भगवान शिव हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण देवता माने जाते हैं और वे त्रिमूर्ति के एक हिस्से के रूप में जाने जाते हैं, जिनमें ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) शामिल हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं और तंत्रिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव की मृत्यु के पीछे की कहानी भव्य और गौरवपूर्ण है। इस लेख में, हम देखेंगे कि भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है।
भगवान शिव की जीवन कथा
पहले ही जानकारी के तौर पर, हम जानते हैं कि भगवान शिव के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनके विवाह से जुड़ा है, जिसमें माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था। माता पार्वती ने अपने तपस्या और आत्मसमर्पण से भगवान शिव को प्राप्त किया था। उनके विवाह का प्रारंभ भगवान शिव की योगी जीवनस्ताइल को पारित करने के बाद हुआ था।
भगवान शिव के विवाह की कथा
भगवान शिव के विवाह की कथा पुराणों में “पार्वती विवाह” या “उमा-महेश्वर विवाह” के रूप में जानी जाती है। यह कथा भगवान शिव के और माता पार्वती के मिलने के बाद का है। इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने तपस्या और साधना के परिणामस्वरूप भगवान शिव को प्राप्त किया था।
माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति बनाने का निश्चय किया और वे उनके पास जाकर उनकी सहायता मांगने लगीं। इसके बाद, उन्होंने अपनी भक्ति और स्नेह के साथ भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके पति बनने की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
भगवान शिव ने माता पार्वती की प्रार्थना को सुना और उन्होंने उनकी प्राप्ति के लिए सहमति दी, लेकिन वह अपने ध्यान और योग से पूर्ण जुटे रहने के बारे में भी चिंतित थे। इसलिए उन्होंने माता पार्वती से यह कहा कि वे अपने तपस्या को और बढ़ाना होगा और जब वे उनके साथ बहुत ही संवादित रूप में हो जाएंगी, तब ही वे उनके साथ विवाह करेंगे।
माता पार्वती ने इसका समर्थन किया और वे फिर से तपस्या करने लगीं। वे अपनी तपस्या को बढ़ाती रहीं और भगवान शिव की आलोचना नहीं करती थीं, बल्कि वे सिर्फ और सिर्फ उनकी भक्ति में लगी रहीं।
अंत में, भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रति अपना प्यार और आदर दिखाया और उन्होंने उनके साथ विवाह किया। इसे “कैलाश पर्वत” पर हुआ माना जाता है, और इस पर्वत को भगवान शिव का घर माना जाता है।
भगवान शिव की मृत्यु कथा | भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई?
हिन्दू पौराणिक कथाओं में, भगवान शिव की मृत्यु की कथा को “दक्ष यज्ञ और वीरभद्र की उत्पत्ति” के तहत जाना जाता है। इस कथा के अनुसार, भगवान शिव के पिता दक्ष राजा थे और वे शिव के प्रति अपने संवाद की अश्रद्धा और अपमान करते रहे थे।
एक बार, दक्ष यज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र-कन्याओं को नहीं बुलाया, जिनमें माता सती भी शामिल थीं। माता सती को यज्ञ में शामिल न करने की वजह से वह बहुत ही दुखी हुईं और अपने पति, भगवान शिव के पास गईं।
माता सती ने दक्ष यज्ञ को बहुत ही अधिक दुर्वश कर दिया और फिर उन्होंने अपनी योगिनी रूप में तपस्या करने का निश्चय किया। वह अपनी तपस्या को बढ़ाती रहीं और अपने प्रेम के साथ भगवान शिव को ध्यान में लगाईं।
इसके बाद, दक्ष यज्ञ का प्रारंभ हुआ और उसमें भगवान शिव की अवाज़ को नहीं बुलाया गया। इससे दक्ष यज्ञ असफल हो गया और उसमें अपमानित होने का भाग्य पाया। दक्ष ने भगवान शिव के खिलाफ बहुत ही निंदा करना शुरू किया और उन्हें अपमानित किया।
इसके बाद, माता सती ने अपनी माता के घर में जाकर दक्ष की विरोधी भावना को दिखाया और उनके अपमान को लेकर दुखी हुईं। उन्होंने अपने शरीर को आग में देदिया और अपनी आत्मा को भगवान शिव के पास लौट आईं।
भगवान शिव ने माता सती के प्रेम और आत्मसमर्पण के साथ उनकी मृत्यु को सहयोगिता दी और वे उनके साथ एक हो गईं। इसके बाद, भगवान शिव ने अपने तपस्या से उनके शरीर के अंशों का धरातल पर गिराया और उनसे एक अद्वितीय और शक्तिशाली देवता को जन्म दिलाया, जिसका नाम “वीरभद्र” था।
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वीरभद्र का कार्य:
वीरभद्र को उसके पिता दक्ष के खिलाफ भगवान शिव के आदेश पर भेजा गया था। वह दक्ष के यज्ञ में गए और वहां उनके प्रति अपमानित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप वह उन्हें हरण कर दिया। यह घटना दक्ष यज्ञ की उन्मादन का कारण बनी और उसके पश्चात्, भगवान शिव की क्रोध से यज्ञशाला का नाश हुआ।
भगवान शिव की मृत्यु का समर्थन:
हिन्दू धर्म में, भगवान शिव की मृत्यु की कथा को पुराणों में विभिन्न रूपों में दिखाया गया है, और इसका मुख्य उद्देश्य उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमोट करना है। इस कथा के माध्यम से, धर्मिक शिक्षा और मानव जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का पालन करने की सीख दी जाती है। भगवान शिव की मृत्यु का कारण उनके और माता सती के प्रेम और सहमति की प्रतीक्षा का अवगमन होना था, जिससे वे एक हो सकते थे और उनका साथी और जीवनसाथी बन सकते थे।
संक्षेप:
भगवान शिव की मृत्यु की कथा एक महत्वपूर्ण धार्मिक कथा है जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है। इस कथा के माध्यम से, हमें भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम और सहमति के आदर्श सिखाए जाते हैं, जिससे हम जीवन में आत्मा की खोज करने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके साथ ही, इस कथा के माध्यम से हमें धर्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का पालन करने का महत्व भी सिखाया जाता है, जिससे हम अपने जीवन को धार्मिकता और सद्गुणों के माध्यम से महत्वपूर्ण बना सकते हैं।